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MP news इमरजेंसी कोई दुर्घटना नहीं, वह कांग्रेस की मानसिकता का परिणाम थी :- भार्गव

इंदौर महापौर पुष्यमित्र भार्गव का बुरहानपुर में तीखा हमला, मीसाबंदियों का किया सम्मान

इमरजेंसी कोई दुर्घटना नहीं, वह कांग्रेस की मानसिकता का परिणाम थी :- भार्गव

इंदौर महापौर पुष्यमित्र भार्गव का बुरहानपुर में तीखा हमला, मीसाबंदियों का किया सम्मान

                                                                                    बुरहानपुर मोहम्मद इक़बाल 

1975 – भारत के लोकतंत्र का वह दिन जिसे इतिहास में काले अध्याय के रूप में लिखा गया और इसी दिन की 50वीं बरसी पर बुरहानपुर के राजस्थान भवन में भारतीय जनता पार्टी द्वारा आयोजित मीसाबंदियों के सम्मान कार्यक्रम में इंदौर के महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने कांग्रेस पर तीखे शब्दबाण चलाते हुए कहा इमरजेंसी कोई दुर्घटना नहीं थी वह कांग्रेस की राजनीतिक आदत और मानसिकता का परिणाम थी श्री भार्गव ने कहा अंग्रेज तो इस देश से चले गए लेकिन आजादी के बाद भी कांग्रेस ने उनकी मानसिकता नहीं छोड़ी आपातकाल इसका उदाहरण है उन्होंने कहा वह समय था जब संविधान को ताक पर रखकर व्यक्तिगत सत्ता की रक्षा के लिए पूरे देश को एक तानाशाही शासन के अधीन कर दिया गया था। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 12 जून 1975 को इंदिरा गांधी के निर्वाचन को अवैध घोषित कर दिया और उन्हें छह वर्षों के लिए चुनाव लड़ने से अयोग्य ठहराया इन सबके बीच 25 जून 1975 की रात को राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने प्रधानमंत्री की सिफारिश पर देश में आपातकाल लागू कर दिया श्री भार्गव ने कहा आज के कांग्रेस नेता कहते हैं कि संविधान खतरे में है और राहुल गांधी हर जगह संविधान की किताब लेकर घूमते हैं लेकिन सच्चाई यह है कि संविधान सबसे ज़्यादा खतरे में तब था जब कांग्रेस ने बिना कैबिनेट की बैठक बुलाए आपातकाल थोप दिया था उन्होंने कहा कि 42वें संविधान संशोधन, प्रेस पर सेंसरशिप और हजारों लोगों की गिरफ्तारी लोकतंत्र की हत्या के उदाहरण हैं भार्गव ने दो टूक कहा इंदिरा गांधी को सत्ता का ऐसा नशा चढ़ा था कि लोकतांत्रिक संस्थाओं को पांव तले रौंद दिया गया।

लिखो तो जेल, चुप रहो तो भी जेल

कार्यक्रम के दौरान महापौर श्री भार्गव ने इमरजेंसी काल में मीडिया की स्थिति को लेकर भी अपनी पीड़ा साझा की उन्होंने कहा तब ऐसा दौर था जब अखबारों में ‘लोकतंत्र जिंदाबाद’ लिखने पर भी पत्रकार जेल चले जाते थे लिखो तो जेल, अच्छा लिखो तो भी जेल और न लिखो तो भी जेल यही उस दौर की तस्वीर थी उन्होंने इसे मीडिया जगत का सबसे काला दौर करार दिया हमारी आने वाली पीढ़ी को जानना चाहिए कि किन लोगों ने बोलने की आज़ादी के लिए जेल काटी थी लोकतंत्र कोई तंत्र नहीं, यह तप से पैदा हुआ है।

मीसाबंदियों का सम्मान, लोकतंत्र के रक्षकों को नमन

इस अवसर पर 1975 के दौरान मीसा कानून में बंद किए गए लोकतंत्र सेनानियों का सम्मान किया गया मंच पर उपस्थित विधायक अर्चना चिटनिस, नेपानगर विधायक मंजू दादू, महापौर माधुरी अतुल पटेल और भाजपा जिलाध्यक्ष ने इन वीरों को संविधान के सच्चे प्रहरी बताते हुए सम्मानित किया।

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